'सत्ता में कोई आए, पर नहीं बदलेगा अमेरिकी विदेश नीति का चर‍ित्र '

बीज‍िंग, 11 नवंबर(आईएएनएस)। अमेरिका के आम चुनाव ने लोगों का ध्‍यान आकर्षित क‍िया है। लेकिन, तथ्य यह है कि अमेरिका में चाहे कोई भी राष्ट्रपति चुना जाए, उसे अमेरिकी हितों के अनुसार कार्य करना पड़ेगा, और अमेरिकी विदेश नीति का चर‍ित्र नहीं बदलेगा। उनके बीच एकमात्र अंतर है कि वह अमेरिकी हितों को लागू करने के लिए किस तरीकों का उपयोग करेगा। ट्रंंप ने बार-बार विदेशी आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाने, और अमेरिका में विनिर्माण की वापसी में तेजी लाने का दावा किया है। ट्रंप की विदेश नीति सरल और अधिक प्रत्यक्ष होगी। इसके मुताबिक कुछ पश्चिमी राजनेताओं की तरह राजनीतिक नारों के बजाय अमेरिका के प्रत्यक्ष हितों पर अधिक ध्यान दिया जाएगा। यदि कोई चीज ब्याज के आदान-प्रदान के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है, तो उसे सैन्य माध्यमों से प्राप्त करना आवश्यक नहीं है। हालांकि, ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों से हटने का निर्णय लिया, इससे यह साबित है कि तथाकथित "अमेरिका फर्स्ट" सिर्फ एक नारा नहीं है। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, अमेरिका तथाकथित रणनीतिक गठबंधनों को छोड़ने में संकोच नहीं करेगा।अगली अमेरिकी सरकार को मुख्य रूप से घरेलू मामलों पर ध्यान केंद्रित करना होगा, अमेरिका आप्रवासन और विदेशी संबंधों के मामले में अधिक आत्म-केंद्रित व्यवहार करेगा और विरोधियों को दबाने के लिए सहयोगियों को हर कीमत पर लुभाने की नीति को कुछ और व्यावहारिक रणनीतियों से जगह ली जाएगी। यही कारण है कि अमेरिका के कुछ मित्र देश ट्रंप की "रणनीतिक छंटनी" के बारे में चिंतित हैं, जो कि "अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों" को कम करना या पूरा नहीं करना है। दूसरे शब्दों में, ट्रंप नेतृत्व में अमेरिका प्रतिस्पर्धियों के दमन में ढील नहीं देगा, लेकिन वह अपने मित्र देशों के साथ व्यापार में आर्थिक हितों से त्याग नहीं देगा। उदाहरण के लिए, ट्रंंप ने बार-बार कहा है कि वह जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, मैक्सिको और भारत सहित कई देशों के आयात पर टैरिफ बढ़ाएंगे। सभी विदेशी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने की नीति का स्पष्ट आर्थिक उद्देश्य है।उधर, विकासशील देशों के लिए, अमेरिकी विदेश नीति में बदलाव का सीधा प्रभाव पड़ेगा। यदि ट्रंंप सरकार अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अमेरिका को लाभ प्रदान करने के लिए मजबूर करती है, तो यह अनिवार्य रूप से चीन, यूरोप और अन्य प्रमुख देशों के बीच एकता को बढ़ावा देगा, और विश्व आर्थिक और व्यापार पैटर्न का नया आकार दिया जाएगा, जबकि ब्रिक्स और एससीओ की भूमिका और अधिक अहम बनेगी। दुनिया की दो सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, चीन और भारत के बीच संबंधों को मजबूत करना निश्चित रूप से एक अपूरणीय विकल्प भी बन जाएगा।(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)--आईएएनएससीबीटी/

Nov 11, 2024 - 13:33
 0
'सत्ता में कोई आए, पर नहीं बदलेगा अमेरिकी विदेश नीति का चर‍ित्र '

बीज‍िंग, 11 नवंबर(आईएएनएस)। अमेरिका के आम चुनाव ने लोगों का ध्‍यान आकर्षित क‍िया है। लेकिन, तथ्य यह है कि अमेरिका में चाहे कोई भी राष्ट्रपति चुना जाए, उसे अमेरिकी हितों के अनुसार कार्य करना पड़ेगा, और अमेरिकी विदेश नीति का चर‍ित्र नहीं बदलेगा। उनके बीच एकमात्र अंतर है कि वह अमेरिकी हितों को लागू करने के लिए किस तरीकों का उपयोग करेगा।

ट्रंंप ने बार-बार विदेशी आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाने, और अमेरिका में विनिर्माण की वापसी में तेजी लाने का दावा किया है। ट्रंप की विदेश नीति सरल और अधिक प्रत्यक्ष होगी। इसके मुताबिक कुछ पश्चिमी राजनेताओं की तरह राजनीतिक नारों के बजाय अमेरिका के प्रत्यक्ष हितों पर अधिक ध्यान दिया जाएगा। यदि कोई चीज ब्याज के आदान-प्रदान के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है, तो उसे सैन्य माध्यमों से प्राप्त करना आवश्यक नहीं है। हालांकि, ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों से हटने का निर्णय लिया, इससे यह साबित है कि तथाकथित "अमेरिका फर्स्ट" सिर्फ एक नारा नहीं है। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, अमेरिका तथाकथित रणनीतिक गठबंधनों को छोड़ने में संकोच नहीं करेगा।

अगली अमेरिकी सरकार को मुख्य रूप से घरेलू मामलों पर ध्यान केंद्रित करना होगा, अमेरिका आप्रवासन और विदेशी संबंधों के मामले में अधिक आत्म-केंद्रित व्यवहार करेगा और विरोधियों को दबाने के लिए सहयोगियों को हर कीमत पर लुभाने की नीति को कुछ और व्यावहारिक रणनीतियों से जगह ली जाएगी। यही कारण है कि अमेरिका के कुछ मित्र देश ट्रंप की "रणनीतिक छंटनी" के बारे में चिंतित हैं, जो कि "अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों" को कम करना या पूरा नहीं करना है। दूसरे शब्दों में, ट्रंप नेतृत्व में अमेरिका प्रतिस्पर्धियों के दमन में ढील नहीं देगा, लेकिन वह अपने मित्र देशों के साथ व्यापार में आर्थिक हितों से त्याग नहीं देगा। उदाहरण के लिए, ट्रंंप ने बार-बार कहा है कि वह जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, मैक्सिको और भारत सहित कई देशों के आयात पर टैरिफ बढ़ाएंगे। सभी विदेशी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने की नीति का स्पष्ट आर्थिक उद्देश्य है।

उधर, विकासशील देशों के लिए, अमेरिकी विदेश नीति में बदलाव का सीधा प्रभाव पड़ेगा। यदि ट्रंंप सरकार अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अमेरिका को लाभ प्रदान करने के लिए मजबूर करती है, तो यह अनिवार्य रूप से चीन, यूरोप और अन्य प्रमुख देशों के बीच एकता को बढ़ावा देगा, और विश्व आर्थिक और व्यापार पैटर्न का नया आकार दिया जाएगा, जबकि ब्रिक्स और एससीओ की भूमिका और अधिक अहम बनेगी। दुनिया की दो सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, चीन और भारत के बीच संबंधों को मजबूत करना निश्चित रूप से एक अपूरणीय विकल्प भी बन जाएगा।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

--आईएएनएस

सीबीटी/

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

HamroGlobalMedia तपाईं पनि हाम्रो वेबसाइट मा समाचार वा आफ्नो विचार लेख्न सक्नुहुन्छ। आजै खाता खोल्नुहोस्। https://www.hamroglobalmedia.com/register