दक्षिण कोरिया: 105 वर्ष बाद स्वतंत्रता सेनानी के अवशेष लाए जाएंगे स्वेदश

सोल, 12 नवंबर (आईएएनएस)। दक्षिण कोरियाई स्वतंत्रता सेनानी ली उई-ग्योंग के अवशेष, 105 साल बाद इस सप्ताह जर्मनी से स्वदेश लाए जाएंगे। वेटरन मिनिस्ट्री ने मंगलवार को यह जानकारी दीली को आत्मकथात्मक उपन्यास 'द यालू रिवर फ्लोज' के लिए जाना जाता है, जो जापान के 1910-45 के उपनिवेशीकरण के दौरान के जीवन को दर्शाता है।मंत्रालय के अनुसार, दक्षिणी जर्मन नगरपालिका ग्रेफेलफिंग में ली की समाधि स्थल पर आयोजित एक स्मारक और विदाई समारोह के बाद ली के अवशेष शनिवार को इंचियोन इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहुंचेंगे।योनहाप समाचार एजेंसी ने मंत्रालय के बयान का हवाला देते हुए बताया कि रविवार को सोल से 140 किलोमीटर दक्षिण में डेजॉन में नेशनल सिमेट्री में अंतिम संस्कार समारोह होगा।1899 में, आधुनिक उत्तर कोरियाई प्रांत साउथ ह्वांगहे के हेजू में जन्मे ली स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए, लेकिन बाद में 1919 में उन्हें शंघाई में निर्वासित होने के लिए मजबूर होना पड़ा।1920 में ली जर्मनी गए, जहाँ उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद की और 'द यालू रिवर फ़्लोज' प्रकाशित किया। बाद में इस किताब को जर्मन स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में शामिल किया गया।ली की मृत्यु 1950 में पेट के कैंसर से हुई थी।दक्षिण कोरिया 1946 से ही स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं के अवशेषों को स्वदेश लाने के काम में लगा है। मंत्रालय के अनुसार, ली के अवशेष स्वदेश लाए जाने वाले 149वें अवशेष होंगे।--आईएएनएसएमके/

Nov 12, 2024 - 07:27
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दक्षिण कोरिया: 105 वर्ष बाद स्वतंत्रता सेनानी के अवशेष लाए जाएंगे स्वेदश

सोल, 12 नवंबर (आईएएनएस)। दक्षिण कोरियाई स्वतंत्रता सेनानी ली उई-ग्योंग के अवशेष, 105 साल बाद इस सप्ताह जर्मनी से स्वदेश लाए जाएंगे। वेटरन मिनिस्ट्री ने मंगलवार को यह जानकारी दी

ली को आत्मकथात्मक उपन्यास 'द यालू रिवर फ्लोज' के लिए जाना जाता है, जो जापान के 1910-45 के उपनिवेशीकरण के दौरान के जीवन को दर्शाता है।

मंत्रालय के अनुसार, दक्षिणी जर्मन नगरपालिका ग्रेफेलफिंग में ली की समाधि स्थल पर आयोजित एक स्मारक और विदाई समारोह के बाद ली के अवशेष शनिवार को इंचियोन इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहुंचेंगे।

योनहाप समाचार एजेंसी ने मंत्रालय के बयान का हवाला देते हुए बताया कि रविवार को सोल से 140 किलोमीटर दक्षिण में डेजॉन में नेशनल सिमेट्री में अंतिम संस्कार समारोह होगा।

1899 में, आधुनिक उत्तर कोरियाई प्रांत साउथ ह्वांगहे के हेजू में जन्मे ली स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए, लेकिन बाद में 1919 में उन्हें शंघाई में निर्वासित होने के लिए मजबूर होना पड़ा।

1920 में ली जर्मनी गए, जहाँ उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद की और 'द यालू रिवर फ़्लोज' प्रकाशित किया। बाद में इस किताब को जर्मन स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में शामिल किया गया।

ली की मृत्यु 1950 में पेट के कैंसर से हुई थी।

दक्षिण कोरिया 1946 से ही स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं के अवशेषों को स्वदेश लाने के काम में लगा है। मंत्रालय के अनुसार, ली के अवशेष स्वदेश लाए जाने वाले 149वें अवशेष होंगे।

--आईएएनएस

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